मैं वैली स्कूल में पिछले कई सालों से हिंदी पढ़ा रही हूँ । जब मैंने इस स्कूल में पढ़ाना शुरू किया तो उससे पहले मैंने हमेशा ही हाई स्कूल और मिडिल स्कूल को ही पढ़ाया था। जब मुझे जूनियर स्कूल को पढ़ाने को कहा गया तो मैं थोड़ी चिंतित थी कि कैसे पढ़ाऊंगी । पर फिर मैंने मन में ठान लिया कि पढ़ाना है ,तो चुनौती तो स्वीकार करनी होगी। तब मैनें एकलव्य द्वारा प्रकाशित किताबों को पढ़ा जिसमें छोटी कक्षाओं को पढ़ाने की विधियॉं पर चर्चा की गई थी और मुझे वह सब बहुत अच्छा लगा । मैंने वहाँ से ही प्रेरणा लेकर अपने स्कूल में कक्षा एक से चार तक के लिए पाठ्यक्रम बनाया जिसमें मुख्य मुद्दा था कि रुचिकर विधियॉं से पढ़ाया जाए और ज्यादा से ज्यादा मौखिक कौशल्य का विकास किया जाए । विशेष रूप से शब्दावली का ज्ञान चित्रों की सहायता के साथ-साथ वास्तविक वस्तुओं और आस पास के वातावरण से सामग्री लेकर दिया जाए। बच्चों को कहानी सुनाई जाए , कविता और गीत न केवल सुनाए जाएँ बल्कि हाव-भाव से सिखाए जाएं , खेल खेले जाएँ और छोटी नाटिकाएं कराकर उनका भाषा के प्रति रुझान बढ़ाया जाए । इन सब के साथ पाठन और लेखन भी कराया जाए पर वह पाठ्यक्रम का केवल चौथा हिस्सा हो। वही पाठ्यक्रम के अनुसार मैंने और मेरी सह अध्यापिका गीता खन्ना ने कार्य पत्रिकाएँ बनाईं । इस ब्लॉग के जरिए मैं वे सब आप सब के साथ बाँटने जा रही हूँ । हमने कई पुस्तकों से सामग्री और विचार लेकर इन कार्य पत्रिकाओं को बनाया। हमने "हिंदी की दुनिया" जिसे चन्द्रिका माथुर जी ने लिखा है , से भी कई विचार लिए और शामिल किए अपने कार्य में । हमने उनके द्वारा लिखी हर अक्षर के लिए कविताओं का प्रयोग किया । हमने एकलव्य और हिंदी की दुनिया की तरह बच्चों को मात्रा का प्रयोग पहली इकाई से नहीं सिखाया बल्कि कई इकाइयों के बाद सिखाया। मुझे एकलव्य का यह विचार बहुत ही अच्छा लगा कि बच्चों को अक्षर न सिखा कर शब्द सिखाएँ जाएँ और सबसे अच्छी बात कि ये शब्द बच्चों के लिए एक चित्र की तरह होते हैं जिन्हे वे सभी अक्षरों को न जानने पर भी आसानी से चित्र की तरह पढ लेते हैं। मैंने यह भी देखा कि इन शब्दों को सीखते-सीखते बच्चे अपने आप ही मात्राओं का उच्चारण ही नहीं उन्हें पहचानना भी सीख गए । जब उन्हें मात्राओ का ज्ञान दिया गया तो बहुत ही आसानी हुई । इस पाठ्यक्रम में अक्षरों के समूह उनके आकार को ध्यान में रखकर बनाए गए । वर्णमाला के क्रम से अक्षरों को नहीं सिखाया गया । इसी दौरान मेरी एक भूतपूर्व प्रधानाध्यापिका ने मुझे उनके स्कूल के एल. के. जी. के छात्रों के लिए कार्यपुस्तिका के साथ विषय -वस्तु और उसे पढ़ाने का ढंग एक पाठ्यक्रम में व्यवस्थित करने के लिए कहा | उन्हीं के लिए मैंने नीचे दी विषय -वस्तु संकलित की है जो यहां प्रस्तुत है | यह विषय -सामग्री मैनें कई पुस्तकों और पत्रिकाओं से एकत्रित की है | इसलिए इस पर मेरा अधिकार नहीं है क्योंकि मैंने केवल इन्हें संगठित कर एक व्यवस्थित क्रम से पढ़ाने का पाठ्यक्रम तैयार किया है | इसलिए उन सब लेखकों और लेखिकाओं को मेरा धन्यवाद | आशा है कि पाठकों के लिए उपयोगी होगी |